झारखंड का राज्य पुष्प पलाश: प्रकृति की अनमोल धरोहर.
रांची : झारखंड का राज्य पुष्प पलाश (Butea monosperma) न सिर्फ राज्य की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि यह जैव विविधता और पारंपरिक उपयोगों की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है।

इसे स्थानीय भाषा में ‘टेसू’ या ‘ढाक’ भी कहा जाता है। वसंत ऋतु में जब पलाश के पेड़ लाल-नारंगी रंग के फूलों से लद जाते हैं, तो झारखंड का ग्रामीण परिदृश्य और भी खूबसूरत नजर आता है।
पलाश की विशेषताएँ
रंग-बिरंगे फूल – पलाश के फूलों का रंग गहरा नारंगी-लाल होता है, जो इसे “जंगल की ज्वाला” भी कहलाने का सम्मान दिलाता है।
सूखे और बंजर इलाकों में भी पनपता है – यह वृक्ष झारखंड के गर्म और शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में भी आसानी से उगता है।
मिट्टी की उर्वरता बनाए रखता है – इसकी पत्तियाँ और गिरे हुए फूल मिट्टी को उपजाऊ बनाने में सहायक होते हैं।
पलाश के पारंपरिक और औषधीय उपयोग
1. होली के रंगों में इस्तेमाल – पुराने समय में इसके फूलों से प्राकृतिक रंग बनाए जाते थे, जो त्वचा के लिए सुरक्षित होते थे।
2. औषधीय गुण – आयुर्वेद में पलाश का उपयोग चर्म रोग, बुखार, पेट के संक्रमण और सूजन को दूर करने में किया जाता है।
3. वन्य जीवों के लिए फायदेमंद – इसके फूल और पत्तियाँ कई पक्षियों और जानवरों के भोजन का स्रोत होती हैं।
4. पत्तों से बनती हैं थालियां – ग्रामीण इलाकों में पलाश के पत्तों से पत्तल और दोना बनाए जाते हैं, जो पर्यावरण के लिए लाभदायक हैं।
संरक्षण की जरूरत
आजकल शहरीकरण और वनों की कटाई के कारण पलाश के पेड़ों की संख्या में कमी आ रही है। इसे बचाने के लिए राज्य सरकार और पर्यावरण प्रेमी पलाश के पौधारोपण को बढ़ावा दे रहे हैं।
राज्य की पहचान
झारखंड के लोकगीतों, त्योहारों और परंपराओं में पलाश का विशेष स्थान है। सरहुल पर्व के दौरान इसका उपयोग पूजा में किया जाता है, जिससे यह झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा बन गया है।
प्रकृति के इस अनुपम उपहार को संरक्षित करना हम सभी की जिम्मेदारी है, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसकी सुंदरता और उपयोगिता से लाभान्वित हो सकें।