उन्होंने इसे भारत के संघीय ढांचे और संसदीय लोकतंत्र पर हमला करार दिया। सिद्धारमैया ने बीजेपी सरकार पर राज्यों के अधिकारों को सीमित करने और सत्ता केंद्रीकरण की साजिश रचने का आरोप लगाया।
उन्होंने कहा कि इस अहम प्रस्ताव पर राज्य सरकारों और विपक्षी दलों से सलाह-मशविरा किए बिना इसे लागू करना लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन है। “मोदी सरकार अपनी तानाशाही प्रवृत्तियों के तहत यह अलोकतांत्रिक कदम थोप रही है,” उन्होंने कहा।
लोकतांत्रिक चुनौतियों पर सवाल
सिद्धारमैया ने इस विधेयक से पैदा होने वाली लोकतांत्रिक और संवैधानिक चुनौतियों को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, “यदि कोई सरकार लोकसभा या विधानसभा में बहुमत खो देती है, तो नए चुनाव ही इसका समाधान हैं। लेकिन यह पहल अल्पमत सरकारों को जबरदस्ती बनाए रखने की कोशिश है, जो लोकतंत्र के खिलाफ है।”
उन्होंने कहा कि इसे लागू करने के लिए संविधान में कई बड़े संशोधन और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में बदलाव की जरूरत होगी। साथ ही, उन्होंने चुनाव आयोग की मौजूदा क्षमता पर सवाल उठाते हुए कहा कि इतने बड़े स्तर पर चुनाव कराने के लिए आयोग के पास संसाधन और क्षमता नहीं है।
संविधान संशोधन पर चिंता
सिद्धारमैया ने कहा कि इस प्रस्ताव के लिए आवश्यक संशोधन भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करेंगे। उन्होंने कहा, “संविधान में संशोधन कर इसे लागू करना हमारे लोकतंत्र को कमजोर करेगा।”
केरल के रुख का समर्थन
सिद्धारमैया ने केरल सरकार के हालिया प्रस्ताव का हवाला देते हुए संकेत दिया कि कर्नाटक भी ऐसा ही कदम उठा सकता है। “अगर जरूरत पड़ी तो कांग्रेस हाई-कमांड से परामर्श कर हम भी इस प्रस्ताव के खिलाफ प्रस्ताव पारित करेंगे,” उन्होंने कहा।
राजनीतिक उद्देश्य का आरोप
मुख्यमंत्री ने इस विधेयक को मोदी सरकार की विफलताओं से ध्यान भटकाने की कोशिश बताया। उन्होंने कहा, “यह चुनावी सुधार का मामला नहीं है, बल्कि केंद्र सरकार की असफलताओं को छिपाने का प्रयास है।”
उन्होंने केंद्र सरकार से राज्यों और विपक्षी दलों के साथ सहयोग करने की अपील की। “बीजेपी सरकार को तानाशाही नीतियां थोपना बंद करना चाहिए और राज्यों के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए,” उन्होंने कहा।