IAS पूजा सिंघल की काली कमाई और खदान पट्टे की आंच अब धीरे-धीरे झारखंड सरकार पर आने लगी है। मई की बढ़ती तपिश के साथ झारखंड की सियासत भी अंदरखाने उबल रही है। 20 मई के बाद कभी भी चुनाव आयोग का फैसला CM हेमंत सोरेन की सदस्यता पर आ सकता है, तो 17 मई को शेल कंपनियों में निवेश के मामले पर हाईकोर्ट अपना फैसला सुना सकता है।
अगर फैसला पक्ष में आया तो सब ठीक, लेकिन दोनों फैसले विपक्ष में गए तो सरकार पर संकट खड़ा हो सकता है। इस बीच खबर है कि सोरेन अपने विकल्प पर भी चर्चा कर रहे हैं। उसमें दो नाम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना और पुराने नेता चंपई सोरेन का सामने आ रहा है।
सरकार के सामने चेहरे का संकट
झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्रा कहते हैं कि पहले भ्रष्टाचार की जो बातें टुकड़ों में सामने आ रही थीं अब वे समग्र रूप लेकर CM हेमंत सोरेन की मुसीबत बढ़ा रही हैं। चुनाव आयोग या हाईकोर्ट में CM पर लगे आरोप प्रमाणित हो जाते हैं तब CM की विधायकी जानी तय है। वो कहते हैं कि मौजूदा स्थिति में एक-दो विधायक के जाने पर सरकार तो बनी रहेगी।
हालांकि, सरकार के सामने सबसे बड़ा संकट चेहरे का होगा। सोरेन परिवार में लगभग सभी सदस्यों पर गंभीर आरोप हैं और इसकी सुनवाई चल रही है। परिवार से इतर किसी और पर यकीन करना CM हेमंत सोरेन के लिए मुश्किल होगा। इसके साथ ही पार्टी को एकजुट रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी।
BJP राज्यसभा चुनाव तक बचना चाहेगी
चंदन मिश्रा कहते हैं कि कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि वो सरकार से बाहर हो। वो भले कुछ नए शर्त जोड़ दे, लेकिन सत्ता के सुख को कभी गंवाना नहीं चाहेगी। इस बीच BJP ऐसी कोई भी जल्दबाजी नहीं करेगी जिससे राज्यसभा चुनाव प्रभावित हो। 10 जून को राज्यसभा चुनाव होना है और BJP वहां अपना नंबर कम करना नहीं चाहेगी। इसके साथ ही BJP कोशिश करेगी कि राज्य में राष्ट्पति शासन लागू हो जाए।
इस मामले का कानूनी पक्ष समझिए
वहीं इस मामले में झारखंड के पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार कहते हैं कि अगर रिप्रेंजेटेशन ऑफ पीपुल एक्ट के धारा 9(A) के ऑब्जेक्टिव मीनिंग पर जाएंंगे तो ये गंभीर मामला है। आरोप सही पाए जाने पर ECI चाहे तो CM हेमंत सोरेन की सदस्यता को रद्द कर सकता है। ECI ने मामले की गंभीरता को देखते हुए उनको नोटिस भी भेजा है। अब आगे की कार्रवाई उनके जवाब पर ही तय होगी।
पूरे मामले में CBI की भी हो सकती है एंट्री
पूर्व महाधिवक्ता ने बताया कि पूजा सिंघल मामले में ED बड़ी जानकारी प्राप्त करने का दावा कर रहा है। अगर मामले में अंतरराज्यीय जांच की जरूरत पड़ती है या राज्य के उच्च अधिकारियों पर आरोप सामने आते हैं तो हाईकोर्ट इसकी CBI जांच के आदेश भी दे सकता है। ये सब इस बात पर तय करेगा कि ED को किस तरह का विषय कलेक्ट कर पाई है और वो 17 मई को हाई कोर्ट के सामने क्या पेश कर पाती है।
जानिए, कैसे सामने आया सरकार का सबसे बड़ा विवाद
दरअसल, फरवरी 2022 में झारखंड के पूर्व CM रघुवर दास ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर हेमंत सोरेन पर ‘पद का दुरुपयोग’ कर रांची जिले में अपने पक्ष में पत्थर की खदान के पट्टे के लिए मंजूरी हासिल करने के आरोप लगाए थे। खनन विभाग के दस्तावेजों को लेकर रघुवर दास ने हेमंत सोरेन पर आरोप लगाए हैं कि यह रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट की धाराओं का उल्लंघन है।
दस्तावेज कहते हैं कि CM के नाम से खनन पट्टे आवंटित हुए थे
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पोर्टल पर दर्ज दस्तावेज दिखाते हैं कि हेमंत सोरेन ने रांची जिले के अनगड़ा ब्लॉक में 88 डिसमिल में खनन पट्टे की मंजूरी के लिए आवेदन दिया था। खदान में उत्पादन 6 हजार 171 टन प्रति वर्ष दिखाया गया था और प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 26 लाख रुपये बताई गई थी। इसमें बताया गया था कि प्रस्तावित योजना 5 साल की है और खदान का अनुमानित जीवन 5 साल का था।
28 मई को CM ने आवेदन दिए 14 जून तक सब फाइनल हो गया
अनगड़ा प्रखंड की कार्यवाही से जुड़े दस्तावेज बताते हैं कि सोरेन का आवेदन 28 मई 2021 को रांची के जिला खनन अधिकारी (DMO) के पास पट्टे की मांग के लिए पहुंचा था। वहीं, 1 जून को DMO ने अनगड़ा के सर्किल ऑफिसर को जांच के लिए कहा। खनन पर सहमति जताने के लिए 7 जून को ग्राम पंचायत बुलाई गई। उसी दिन अनगड़ा प्रखंड विकास पदाधिकारी ने DMO को लिखित में जानकारी दी कि ग्रामसभा ने खनन के पट्टे के लिए सहमति दे दी और 15 दिन के भीतर 14 जून को सोरेन और गांव के 9 लोगों के बीच समझौते पर हस्ताक्षर भी हो गए।
पूरे मामले पर क्या है सरकार का पक्ष
लीज का विवाद हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। शिवशंकर शर्मा नाम के एक प्रार्थी ने झारखंड हाईकोर्ट में माइंस लीज आवंटन मामले में जनहित याचिका दायर की है। इसके जवाब में 8 अप्रैल को हुई मामले में सुनवाई के दौरान एडवोकेट जनरल राजीव रंजन ने कहा था कि राज्य ने खनन के लि मंजूरी देने में ‘एक गलती की है।’ उन्होंने बताया था कि भले ही सोरेन मंत्री रहते हुए कारोबारों में शामिल रहे हों, लेकिन कोई भी वैधानिक या संवैधानिक उल्लंघन नहीं हुआ था। उन्होंने कहा था कि सोरेन ने लीज सरेंडर कर 11.02.22 को इससे खुद को अलग कर लिया था।
2009 में मुख्यमंत्री रहते तमाड़ उपचुनाव हार गए थे शिबू सोरेन
CM रहते हेमंत सोरेन के पिता शिबू सोरेन 2009 में तमाड़ विधानसभा उप चुनाव हार गए थे। तब JDU के प्रत्याशी गोपाल कृष्ण पातर (उर्फ राजा पीटर) ने उन्हें लगभग नौ हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। उनके हारते ही झामुमो, कांग्रेस और राजद गठबंधन की सरकार गिर गई थी। राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया था। तमाड़ का यह चुनाव परिणाम झारखंड की सियासी इतिहास में एक न भूलने वाला पन्ना है।
Source : Dainik Bhaskar