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कश्मीर नहीं, हिंदू बहुल जम्मू के हाथों में होगी सत्ता की चाबी? जानिए परिसीमन से BJP को फायदा कैसे

जम्मू-कश्मीर की विधानसभा और लोकसभा सीटों के परिसीमन को लेकर केंद्र द्वारा गठित आयोग ने अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंप दी है। इन प्रस्तावों पर आखिरी फैसला केंद्र सरकार को लेना है। इससे जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का रास्ता साफ हो गया है। परिसीमन आयोग ने जिन बदलावों का सुझाव दिया है, उनका बीजेपी को छोड़कर घाटी की बाकी पार्टियां विरोध कर रही हैं।

क्या है जम्मू-कश्मीर के लिए नया परिसीमन प्रस्ताव?

परिसीमन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जम्मू में 6 और कश्मीर में 1 विधानसभा सीट समेत कुल 7 विधानसभा सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। इन प्रस्तावों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में अब विधानसभा सीटें 83 से बढ़कर 90 हो जाएंगी, जबकि लोकसभा सीटें 5 ही रहेंगी।

राज्य की मौजूदा विधानसभा सीटों की संरचना में भी बड़ा बदलाव किया गया है। प्रस्तावों के मुताबिक, जम्मू की विधानसभा सीटें 37 से बढ़ाकर 43 और कश्मीर की 46 से 47 किए जाने का प्रस्ताव है।

जम्मू क्षेत्र के 6 जिलों- किश्तवाड़, सांबा, कठुआ, डोडा राजौरी और उधमपुर जिलों में एक-एक नई सीट जोड़ी जानी है, जबकि एक सीट कश्मीर क्षेत्र के कुपवाड़ा में जोड़ी जाएगी।

दरअसल, 2019 में धारा 370 लागू होने से पहले जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 87 विधानसभा सीटें थीं, लेकिन इसके बाद 4 सीटें लद्दाख में चली गई हैं। यानी अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 83 सीटें रह गईं। जिसे अब बढ़ाकर 90 किया जाना है।

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के अनुसार जम्मू-कश्मीर की विधानसभा सीटों की कुल संख्या 107 से बढ़ाकर 114 किए जाने का प्रस्ताव है। इन 114 में से 24 सीटें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी PoK के लिए आरक्षित हैं, जो खाली रहेंगी।

पहली बार अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए 9 सीटें आरक्षित की गई हैं, इनमें से 6 सीटें जम्मू और तीन सीटें कश्मीर के लिए निर्धारित हैं।

पहली बार कश्मीरी पंडितों के लिए 2 सीटें रिजर्व करने की सिफारिश की गई है। वहीं PoK के विस्थापित शरणार्थियों के लिए भी कुछ सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की गई है।

परिसीमन में कई विधानसभा सीटों के नाम बदलने की सिफारिश है। रियासी जिले में गूल-अरनास निर्वाचन क्षेत्र को नई सीट श्री माता वैष्णोदेवी के रूप में नया रूप दिया गया है।

जम्मू क्षेत्र में पद्दर विधानसभा सीट का नाम बदलकर पद्दर-नागसेनी, कठुआ उत्तर को जसरोटा, कठुआ दक्षिण को कठुआ, खौर को छांब, महोरे को गुलाबगढ़, तंगमर्ग को गुलमर्ग, जूनीमार को जैदीबाल, सोनार को लाल चौक और दरहल का नाम बुढ़हल किया गया है।

जम्मू-कश्मीर में 1995 में आखिरी परिसीमन के बाद से वहां जिलों की संख्या 12 से बढ़कर 20 हो चुकी है।

लोकसभा सीटों की संख्या नहीं, इलाके में बदलाव

जम्मू-कश्मीर में 5 लोकसभा सीटों-बारामूला, श्रीनगर, अनंतनाग-राजौरी, उधमपुर और जम्मू को ही बरकरार रखा गया है। लेकिन लोकसभा सीटों की सीमाओं को पुनर्निर्धारित किया गया है।

अनंतनाग और जम्मू की सीटों की सीमाओं में बदलाव किया गया है। जम्मू के पीर पंजाल क्षेत्र को अब कश्मीर की अनंतनाग सीट से जोड़ दिया गया है। पीर पंजाल में पुंछ और राजौरी जिले आते हैं, जो पहले जम्मू संसदीय सीट का हिस्सा थे। श्रीनगर संसदीय क्षेत्र के एक शिया बहुल क्षेत्र को बारामूला संसदीय सीट में स्थानांतरित कर दिया गया है।

क्यों हो रहा है जम्मू-कश्मीर के नए परिसीमन प्रस्ताव का विरोध?

कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सवाल उठाया है कि जब पूरे देश के बाकी निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर 2026 तक रोक लगी है, तो फिर जम्मू-कश्मीर के लिए अलग से परिसीमन क्यों हो रहा है।

दरअसल, पूरे देश में परिसीमन की प्रक्रिया पर 2026 तक रोक लगी है और केवल जम्मू-कश्मीर में ही विधानसभा क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण हो रहा है।

जम्मू-कश्मीर के परिसीमन के विरोध की दूसरी वजह राजनीतिक है। दरअसल, राजनीतिक पार्टियां जनसंख्या के लिहाज से ज्यादा आबादी वाले मुस्लिम बहुल कश्मीर में कम सीटें बढ़ाने और हिंदू बहुल जम्मू में ज्यादा सीटें बढ़ाने के कदम की आलोचना कर रही हैं।

हिंदुओं वाला जम्मू कैसे अब मुस्लिम वाले कश्मीर पर भारी पड़ेगा?

कश्मीर की पार्टियों का आरोप है कि नए परिसीमन के जरिए बीजेपी हिंदू बहुल जम्मू को राजनीतिक बढ़त दिलाकर अपनी राजनीतिक चमकाना चाहती है।

अभी जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम बहुल वाले कश्मीर में 46 सीटें हैं और बहुमत के लिए 44 सीटें ही चाहिए। हिंदू बहुल इलाके जम्मू में 37 सीटें हैं। ऐसे में अधिकांश मुख्यमंत्री कश्मीरके बनते रहे हैं।

परिसीमन के बाद यह गणित बदल जाएगा। नए परिसीमन के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर की कुल 90 सीटों में से अब 43 जम्मू में और 47 कश्मीर में होंगी। साथ ही 2 सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए रिजर्व करने का सुझाव दिया गया है।

इन बदलावों के बाद जम्मू की 44% आबादी 48% सीटों पर वोटिंग करेगी। कश्मीर में रहने वाले 56% लोग बची हुई 52% सीटों पर मतदान करेंगे। अभी तक कश्मीर के 56% लोग 55.4% सीटों पर और जम्मू के 43.8% लोग 44.5% सीटों पर वोट करते थे।

विपक्षियों का आरोप है कि नए परिसीमन में जम्मू के लिए जो 6 सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव है, उनमें से अधिकतर जिले हिंदू बहुल हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, कठुआ, सांबा और उधमपुर हिंदू बहुल हैं। कठुआ की हिंदू आबादी 87%, सांबा और उधमपुर की क्रमश: 86% और 88% है। किश्तवाड़, डोडा और राजौरी जिलों में भी हिंदुओं की आबादी 35 से 45% है।

2008 के जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने 87 में से 11 सीटें जीती थीं। लेकिन 2014 में हुए अगले चुनावों में बीजेपी 25 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। 2014 विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपनी सभी 25 सीटें जम्मू क्षेत्र से ही जीती थीं, जबकि कश्मीर में उसका खाता तक नहीं खुला था।

ऐसे में माना जा रहा है कि परिसीमन में जम्मू में 6 सीटें और जुड़ने से बीजेपी और मजबूत होगी। वहीं इससे पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस को नुकसान होने की संभावना है।

अगर पुंछ और राजौरी जम्मू लोकसभा सीट में बने रहते हैं तो इसे ST रिजर्व लोकसभा सीट घोषित करना पड़ सकता है। इससे बीजेपी को हिंदू वोट मजबूत करने में मदद मिलेगी। बारामूला के पुनर्गठन से शिया वोट मजबूत होंगे। इससे सज्जाद लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस को फायदा होगा। सज्जाद बीजेपी के करीबी माने जाते हैं।

किस आधार पर हुआ जम्मू-कश्मीर का नया परिसीमन?

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार परिसीमन का मुख्य आधार 2011 की जनगणना होना चाहिए। लेकिन आयोग का कहना है कि उसने परिसीमन के लिए राज्य के क्षेत्रफल, भौगोलिक परिस्थितियों, सीमा से दूरी जैसे फैक्टर्स को भी ध्यान में रखा।

2011 की जनसंख्या के अनुसार, कश्मीर की आबादी (68.8 लाख) जम्मू (53.3 लाख) की तुलना में 15 लाख अधिक है। नए परिसीमन प्रस्ताव के अनुसार जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों का पुनर्निर्धारण होने पर वहां जम्मू की 1.25 लाख जनसंख्या की तुलना में कश्मीर की जनसंख्या का अनुपात 1.46 लाख होगा।

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का इतिहास?

आर्टिकल 370 हटाए जाने से पहले जम्मू और कश्मीर की लोकसभा सीटों का परिसीमन केंद्र करता था। विधानसभा सीटों का राज्य सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट, 1957 के तहत होता था।

2019 में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा और लोकसभा दोनों सीटों का परिसीमन का अधिकार केंद्र के पास चला गया है।

जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार परिसीमन 1995 में तब हुआ था, जब वहां राष्ट्रपति शासन लागू था। तब जम्मू कश्मीर विधानसभा की सीटें 76 से बढ़ाकर 87 की गई थीं, जिनमें जम्मू की सीटें 32 से बढ़ाकर 37 और कश्मीर की सीटें 42 से बढ़ाकर 46 की गई थीं।

2002 में जम्मू-कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार ने राज्य के परिसीमन को 2026 तक के लिए टालने का प्रस्ताव पारित किया था।

क्या होता है परिसीमन?

परिसीमन किसी क्षेत्र की जनसंख्या में परिवर्तन को दर्शाने के लिए किसी विधानसभा या लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं का पुनर्निर्धारण होता है।

परिसीमन आयोग एक स्वतंत्र निकाय है और कार्यकारी और राजनीतिक दल इसके कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

आयोग का नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस करते हैं और इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त और राज्य चुनाव आयुक्त शामिल होते हैं।

क्या है जम्मू-कश्मीर के लिए बना परिसीमन आयोग?

आर्टिकल 370 हटने के बाद मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों को दोबारा निर्धारित करने के लिए 6 मार्च 2020 को एक परिसीमन आयोग का गठन किया था। इस आयोग को एक साल में अपनी रिपोर्ट सौंपनी थी, लेकिन कोरोना की वजह से समयसीमा बढ़ती रही और आखिरकार उसने 5 मई 2022 को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपी।

परिसीमन आयोग की अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई हैं। इसके अन्य सदस्यों में मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा, वरिष्ठ उप चुनाव आयुक्त चंद्र भूषण कुमार और जम्मू-कश्मीर चुनाव आयुक्त केके शर्मा शामिल हैं। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के पांच सांसद इसके सहयोगी सदस्य हैं।

Source : Dainik Bhaskar

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