यह कदम हार्वर्ड द्वारा ट्रंप प्रशासन की शर्तों को मानने से इनकार करने के बाद उठाया गया है।
सरकार ने हार्वर्ड से कैंपस में एक्टिविज़्म को सीमित करने की मांग की थी।

प्रशासन ने यूनिवर्सिटी को “मेरिट-बेस्ड” एडमिशन और हायरिंग पॉलिसी लागू करने को कहा था।
इसके अलावा छात्रों, फैकल्टी और लीडरशिप की विविधता पर विचारधारा की ऑडिट की भी मांग की गई थी।
सरकार की मांगों में फेस मास्क पर प्रतिबंध भी शामिल था, जिसे खासकर प्रो-फिलिस्तीनी प्रदर्शनों से जोड़ा गया।
उन्होंने ऐसे किसी भी छात्र समूह को फंडिंग बंद करने को कहा जो आपराधिक गतिविधियों या हिंसा को समर्थन देता है।
हार्वर्ड के प्रेसिडेंट एलन गार्बर ने सरकार के इन आदेशों को संविधान के पहले संशोधन का उल्लंघन बताया।
गार्बर ने कहा कि ये मांगें टाइटल VI के अधिकार क्षेत्र से भी बाहर हैं।
उनका कहना था कि सरकार यह तय नहीं कर सकती कि निजी विश्वविद्यालय क्या पढ़ाएं, किसे भर्ती करें या कौन से विषय पढ़ाएं।
उन्होंने लिखा कि यूनिवर्सिटी ने पहले से ही एंटीसेमिटिज्म पर कई सुधार किए हैं।
गार्बर ने कहा कि विश्वविद्यालय अपनी कमियों को खुद पहचानकर सुधार करेगा, न कि सरकार की ताकत के बल पर।
ट्रंप प्रशासन यह कदम बड़े विश्वविद्यालयों पर दबाव बनाने के लिए उठा रहा है।
प्रशासन का आरोप है कि कई विश्वविद्यालयों ने इस्राइल विरोधी प्रदर्शनों में एंटीसेमिटिज्म को नजरअंदाज किया।
हार्वर्ड सहित कई विश्वविद्यालयों ने इस आरोप को खारिज किया है।
सरकार की इन मांगों को शिक्षा नीति में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है।
इस फैसले ने अमेरिका में शिक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस छेड़ दी है।
विश्वविद्यालयों का कहना है कि शैक्षणिक आज़ादी को राजनैतिक दबाव में नहीं झुकाया जा सकता।
इस विवाद का असर अमेरिका के अन्य प्रमुख संस्थानों पर भी पड़ सकता है।
अब देखना होगा कि यह मुद्दा कोर्ट में पहुंचता है या बातचीत से सुलझता है।