बिखराव के चक्रव्यूह में उलझी ‘इंडिया’ गठबंधन की कहानी! कई दलों पर मंडरा रहा पाला बदलने का खतरा, जानिए पूरी बात
राजनीति का अंदाज और स्वरूप बिल्कुल बदल गया है। आजादी के बाद से अब तक देश की राजनीति ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। राजनीति में नये-नये प्रयोग भी होते रहे हैं। आजादी के बाद कांग्रेस सत्ता की बड़ी खिलाड़ी बन कर उभरी तो बाद के समय में उसे गठबंधन की राजनीति में उतरना पड़ा। मनमोहन सिंह की सरकार दो टर्म गठबंधन के सहारे ही चली। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के बरक्स भाजपा ने समान विचारधारा न होने के बावजूद एनडीए बनाया। अटल बिहारी वाजपेयी के शासन को छोड़ दें तो लगातार दूसरी बार एनडीए की सरकार बनी है। भारतीय राजनीति में इंदिरा गांधी की इमर्जेंसी का दौर दिखा तो अपनी पहचान गंवा कर विपक्षी पार्टियों द्वारा बनाई गई जनता पार्टी की कामयाबी भी दिखी। गठबंधन की राजनीति में बीजेपी भी पीछे नहीं रही है। जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पीडीपी से बीजेपी ने भी गठबंधन किया था। यह अलग बात है कि स्वार्थ और अवसर को भुनाने की नीयत से बनी गठबंधन की वह सरकार भी टिकाऊ नहीं हो पाई। पीडीपी भी नीतीश कुमार के जेडीयू की तरह अब भाजपा की कट्टर दुश्मन बन गई है। फिलहाल देश में दो सियासी गठबंधन- ‘एनडीए’ और ‘इंडिया’ हैं। दोनों ही लगभग बराबर की संख्या में राजनीतिक दलों के गठबंधन हैं।
गठबंधन की राजनीति व पाला बदल का खेल
गठबंधन सरकारों का दौर तो देश में काफी पुराना है। कभी राज्यों में गठबंधन की सरकार बनतीं तो कभी राष्ट्रीय स्तर पर। इस क्रम में राजनीतिक दल और उनके नेता पाला भी खूब बदलते रहे हैं। बिहार में नीतीश कुमार को ही लीजिए। साल 2013 में पहली बार उन्होंने बीजेपी का साथ छोड़ा। 2017 में वे फिर बीजेपी के साथ आ गए। साल 2020 में नीतीश की पार्टी जेडीयू ने बीजेपी के साथ बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा तो 2022 में नीतीश फिर भाजपा के साथ से ऊब गए। उन्होंने आरजेडी के नेतृत्व वाले तत्कालीन छह दलों के महागठबंधन से हाथ मिला लिया। उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रयोग को दोहराने की बात उठी। नीतीश की पहल पर विपक्षी दलों को एकजुट करने का प्रयास शुरू हुआ और अब विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में 28 दल शामिल हो चुके हैं। गठबंधन की राजनीति यूपी में भी खूब हुई है। मायावती की पार्टी बीएसपी, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के अलावा कई छोटे दल कभी पास आए तो कभी दूर भागे। मायावती को छोड़ फिलहाल जो ‘इंडिया’ है, उसमें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी फिर साथ हैं।
गठबंधन सरकारों में खतरे भी कम नहीं होते हैं
साल 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में इमर्जेंसी थोप दी थी। उसके बाद विपक्षी दलों की ओर से बनाई गई जनता पार्टी भी गठबंधन का ही परिष्कृत रूप थी। ढाई साल में ही जनता पार्टी दोहरी सदस्यता के सवाल पर बिखर गई थी। फिर इंदिरा गांधी ने जोरदार ढंग से सत्ता में वापसी की थी। उसके बाद इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने कांग्रेस की बहुमत वाली सरकार चलाई। राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के सामने फिर नेतृत्व का संकट पैदा हुआ, लेकिन सोनिया गांधी ने नेतृत्व के लिए अपनी सहमति देकर कांग्रेस को उबार लिया। सोनिया की सूझबूझ से यूपीए गठबंधन बना और 2014 तक कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए देश की सत्ता पर काबिज रहा। 2014 के बाद से भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने कमान संभाली और लगातार दूसरी बार नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्र बने।
विपक्षी गठबंधन पर मंडरा रहा है बिखराव का खतरा
जी20 की बैठक के दौरान राष्ट्रपति के भोज में बिहार के सीएम नीतीश कुमार, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और हिमाचल प्रदेश के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू शामिल हुए। भोज में तीनों तब शामिल हुए, जब केंद्र सरकार के हर एजेंडे के विरोध का सम्मिलित विरोध का विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने सैद्धांतिक निर्णय लिया था। कांग्रेस या यूं कहें कि विपक्षी गठबंधन के लिए तीनों सीएम का भोज में शामिल होना खतरे की घंटी की तरह है। नरेंद्र मोदी के अकाउंट से भोज की कुछ तस्वीरें जारी की गईं, जिनमें हेमंत सोरेन और नीतीश कुमार को अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन से मिलाते मोदी दिख रहे हैं। इस तस्वीर ने ‘इंडिया’ में सियासी हलचल बढ़ा दी है। हेमंत सोरेन भी झारखंड में भाजपा के साथ सरकार में पहले रह चुके हैं। नीतीश कुमार भी भाजपा के साथ लंबे समय तक सरकार चला चुके हैं। इसलिए विपक्षी गठबंधन के लिए इन दोनों का मोदी के साथ दिखाई देना आश्चर्य तो पैदा करता ही है। कयास लगने लगे हैं कि नीतीश कुमार फिर कहीं एनडीए खेमे में न चले जाएं।
